




उद्योग विभाग में प्रस्तुत सर्टिफिकेट और लागत रिपोर्टसन्देहास्पद, बरमकेला और सारंगढ़ में खुले हैं 40 से ज्यादा राईस मिल
रायगढ़, 3 मार्च। उद्योग विभाग में सब्सिडी के प्रकरणों में भारी उछाल आया है। दो-तीन सालों में अचानक से बरमकेला और सारंगढ़ तहसील से करीब 40 राइस मिलों ने सब्सिडी का खेल खेला है। धान खरीदी की लिमिट बढ़ाने के कारण कई लोगों ने आनन- फानन राइस मिलों में निवेश किया है। इसमें लागत जिस काम की दिखाई जा रही है, हकीकत में उतनी नहीं है। प्रोजेक्ट रिपोर्ट और प्रोडक्शन सर्टिफिकेट में ही पूरा खेल है। सारंगढ़ और बरमकेला में ऐसे कई राइस मिल खुल गए हैं, जिनमें नाममात्र को ईंट, रेत और सीमेंट उपयोग हुआ है। जो प्रोजेक्ट रिपोर्ट दी गई है, उसमें पक्के निर्माण के हिसाब से लागत बताई गई है।चाहे वह बाउंड्रीवॉल हो या विल्डिंग। सभी में प्रोजेक्ट कॉस्ट पक्के निर्माण’ के हिसाब से आकलित की गई है। लेकिन हकीकत में वहां टिन या एल्युमिनियम के शेड डालकर काम पूरा किया गया है। थोड़ी ऊंचाई तक दीवार उठाई गई है, इसके बाद चारों ओर – से शेड से कवर कर दिया गया है। लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया ताकि सब्सिडी भी ज्यादा मिल सके। वैल्युअर ने भी प्रोजेक्ट की लागत को पार्टी के हिसाब से बताया है। मौके पर उतनी लागत ही नहीं है। सारंगढ़ और बिलाईगढ़ में बीते तीन सालों में करीब 40-50 राइस मिल खुल गए हैं। कई के काम अधूरे हैं लेकिन धान उठाव हो गया है।टिकरा के बीच मिल खोल ली गई है। एक राइस मिल की लागत औसतन दो करोड़ है। करीब 70 लाख रुपए सब्सिडी मिलती है। लागत को बढ़ा दिया जाए तो सब्सिडी से ही यूनिट की लागत वसूल हो जाती है। राइस मिल लगाने के लिए लोन लिया गया है। प्रोजेक्ट कॉस्ट, सीए सर्टिफिकेट और कैपिटल सब्सिडी इस्पेक्शन रिपोर्ट के हिसाब से प्रकरण स्वीकृत कर दिया जाता है। मिल संचालक को मिलने वाली सब्सिडी से लोन चुका दिया जाता है। एक तरह से राइस मिल को कागजों में ही खेल कर मुफ्त कर लिया जाता है। जबकि निर्माण में लगे मटेरियल की जांच करने पर कॉस्ट आधी तक हो सकती है।