




शासन ने अनियमितता के लिए जिम्मेदार अफसरों व कर्मचारियों की जानकारी मांगी, की गई कार्रवाई से भी अवगत कराने को कहा
रायगढ़। एनटीपीसी लारा जमीन घोटाले का जिन्न फिर बोतल से बाहर आया है। सालों पहले हुए घोटाले के जिम्मेदार तो अब ‘प्रमोट होकर सिस्टम में बड़े ओहदे पर बैठ गए हैं। अब सामान्य प्रशासन विभाग ने इस भुला दिए गए घोटाले की जानकारी मांगी है। रायगढ़ कलेक्टर को पत्र लिखकर पूछा गया है कि इस घपले में क्या कार्रवाई की गई थी। जिन पर कार्रवाई हुई वो अभी कहां हैं। एनटीपीसी लारा के लिए हुए भूअर्जन में नियमों को तार-तार कर दिया गया था। राजस्व व उद्योग विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने जमकर लूटखसोट मचाई।
मामला उजागर होने के बाद सरकार ने टीम बनाकर जांच के आदेश दिए थे। इसकी रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है। इसमें तत्कालीन तहसीलदारों, एसडीएम, सीजीएम डीआईसी समेत सरपंच, सचिव, पटवारी, आरआई और लिपिक को भी दोषी पाया गया था। अब सामान्य प्रशासन विभाग ने पत्र लिखकर जानकारी मांगी है। पूछा गया है कि जिनको गड़बड़ी का जिम्मेदार माना गया था, वे अब किस स्थान पर पदस्थ हैं। इसके झुलावा की गई कार्रवाई के बारे में भी पूछा गया है। राज्य शासन ने पूर्व में घपले की जांच के लिए राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के तत्कालीन संयुक्त सचिव पी निहलानी, तत्कालीन अपर कलेक्टर कोरबा इफ्फत आरा और तत्कालीन तहसीलदार कोरबा बीएस मरकाम की तीन सदस्यीय टीम का गठन किया था।रिपोर्ट के मुताबिक लारा क्षेत्र के 9 गांवों में इस गोलमाल में राजस्व विभाग के तत्कालीन करीब दर्जन भर अधिकारी-कर्मचारी व सरपंच सचिव भी दोषी हैं। एनटीपीसी को नुकसान पहुंचाने में कंपनी के ही कुछ अधिकारियों की भी भूमिका होने का खुलासा भी रिपोर्ट में किया गया है। लारा, झिलगीटार, बोड़ाझरिया, छपोरा, आड़मुड़ा, महलोई, रियापाली, कांदागढ़ और देवलसुर्रा के भूअर्जन प्रकरण, नामांतरण अभिलेख, तैयार पुनर्वास नीति, भुगतान की गई पुनर्वास राशि, खसरा, बी-1 आदि दस्तावेजों का सूक्ष्मता से परीक्षण किया गया। जांच टीम ने 26 अगस्त 2014 को भूअर्जन क्षेत्र का दौरा भी किया था।
159 की आबादी वाले गांव में 1790 खातेदार
जांच टीम ने प्रत्येक गांव की विस्तृत रिपोर्ट बनाई थी। हर गांव में गड़बड़ी के लिए ज़िम्मेदारों की सूची अंत में निष्कर्ष के तौर पर दी गई है। इसमें झिलगीटार में – कुल आबादी 159 व मकान संख्या 39 होने के बावजूद 1790 खातेदार होने का जिक्र किया गया है। जांच टीम ने हर गांव में असंबद्ध खातों, गलत बोनस वितरण समेत प्रत्येक बिंदु पर सूचीवार रिपोर्ट सौंपी है। एक-एक मामले को कुरेद-कुरेद कर निकाला गया है।
इनको माना था दोषी
उद्योग विभाग के सीजीएम केएन फूलझेलै ने त्रुटिपूर्ण मुआवजा पत्रकों में बिना आपत्ति हस्ताक्षर किए। बोनस वितरण के लिए एनटीपीसी को निर्देशित किया। तत्कालीन एसडीएम जेआर चौरसिया व तीर्थराज अग्रवाल ने अवैधानिक खातेदारों को पक्षकार बनाने, मुआवजा पत्रक तैयार करने, भुगतान करने, असंबद्ध व खरीदी बिक्री को न रोककर उसी आधार पर मुआवजा वितरण कराया। एसडीएम रीडर व शाखा लिपिक को भी दोषी माना गया था। तत्कालीन तहसीलदार नीलम टोप्पो व संजय सोमावार ने कृषि भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों में खरीद-बिक्री, अवैधानिक खातों का सृजन, नामांतरण, भूअभिलेखों की दुरुस्ती, ऋण पुस्तिका जारी करने का काम किया। उप पंजीयक नेहरू लाल पंकज ने कृषि भूमि के अत्यधिक छोटे टुकड़ों का पंजीयन, एक ही दिन एक ही गांव की कई रजिस्ट्री करवाईं जो संदिग्ध थी। इनके विरुद्ध पृथक से जांच की अनुशंसा की गई थी। पटवारी रामकिशोर भोय, केशव प्रसाद राठिया, सुरेंद्र चौधरी को अवैधानिक खातों के सृजन में सीधे तौर पर संलिप्त माना गया। मुआवजा वितरण के लिए अवैध तरीके से ऋण पुस्तिकाएं भी जारी करवाई।