





धरमजयगढ़। प्रधानमंत्री आवास योजना, जिसका उद्देश्य गरीबों को पक्का छत देना है, वह खुद भ्रष्टाचार और लापरवाही की चपेट में आ चुकी है। जनपद पंचायत क्षेत्र के अंतर्गत बन रहे अनेक आवास आज भी अधूरे पड़े हैं। रकम निकाल ली गई, फर्जी जिओ-टेकिंग तक कर दी गई, परंतु मकान आज भी दीवार और छत को तरस रहे हैं।
लेकिन विशेष पिछड़ी जनजाति बिरहोर समुदाय, जिन्हें राष्ट्रपति दत्तक पुत्र भी कहा जाता है, इस योजना के सबसे बड़े लाभार्थी होने चाहिए थे। लेकिन विडंबना यह है कि जिनके सिर पर पक्का छत होना था, वे अब भी अधूरे ढांचे के नीचे उम्मीदों का बोझ ढो रहे हैं।
मामले में एक बिरहोर महिला हितग्राही ने खुलकर आरोप लगाया है कि पंचायत सचिव ने पासबुक और आधार कार्ड अपने पास रखकर किस्त की राशि निकलवाई। हितग्राहियों से पैसे तक वसूले गए, पर आज तक मकान पूरा नहीं हुआ। सवाल यह भी है कि जब सरकार की ओर से धनराशि जारी हो रही है, तब जमीनी स्तर पर कार्य अधूरा क्यों पड़ा है?
सूत्र बताते हैं कि मनरेगा के तहत मिलने वाली किस्तों के भुगतान में अड़चनें और अफसर-कर्मचारियों की लापरवाही से यह स्थिति बनी है। परिणाम यह है कि गरीब और वंचित परिवार, जिनके लिए यह योजना उम्मीद की किरण थी, वे अब भ्रष्टाचार और अनदेखी के अंधेरे में घिर गए हैं।
लेकिन वहीं योजना का मकसद लोगों को छत देना था, मगर यहां तो छत से पहले ही उनकी उम्मीदों को लूट लिया गया। सवाल अब शासन और प्रशासन पर उठ रहे हैं—क्या गरीबों के नाम पर चलने वाली योजनाएं केवल कागज़ों पर ही पूरी होंगी? या सचमुच बिरहोर जैसे समुदायों तक पहुंच पाएगी?







