




रायगढ़, 256अक्टूबर। सरकार ने वर्ष 24-25 के लिए कस्टम मिलिंग नीति जारी कर दी है। इसे देखकर राइस मिलर्स हैरान हैं। पिछली सरकार ने प्रोत्साहन राशि को बढ़ाकर 120 रुपए किया था, लेकिन इस बार वापस से 60 रुपए कर दिया गया है। इसके अलावा स्टेक मिलने के बाद चावल जमा नहीं करने पर पेनाल्टी लगाई जाएगी। पहले ही लंबित भुगतान को लेकर परेशान राइस मिलर्स नई कस्टम मिलिंग नीति से और भी हैरान हैं। पिछली सरकार ने मिलर्स के लिए प्रोत्साहन राशि को बढ़ाकर 120 रुपए किया था। लेकिन अब इसे घटाकर 60 रुपए कर दिया गया है। इस बार स्लैब सिस्टम को भी हटा दिया गया है। न्यूनतम दो माह की क्षमता में आवंटित धान की मात्रा के आधार पर मिलिंग करने पर उक्त राशि में से 50 प्रश का भुगतान कस्टम मिलिंग शुल्क के साथ ही किया जाएगा।
पिछले तीन सालों में जो राइस मिल संचालक आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत दोषी पाए गए हैं, उनका पंजीयन नहीं किया जाएगा। मिलों का पंजीयन स्टेट फूड प्रोक्योरमेंट पोर्टल में होना है। इसमें मिल संचालकों को बिजली खपत की जानकारी भी देनी होगी। मिलरों को उनकी वार्षिक क्षमता का केवल 75 प्रश तक ही धान दिया जा सकेगा। मिलों के मासिक बिजली खपत का डाटा और जमा किए गए चावल की जानकारी देनी होगी। मिलर्स द्वारा उठाए गए धान की रिसायक्लिंग रोकने के लिए मिलों और केंद्रों का लगातार भौतिक सत्यापन करने को कहा गया है। कई मिलर्स धान का भौतिक उठाव किए बिना ही उपार्जन केंद्र में ही पावती लेकर डीओ पलटी कर देते हैं।
15 रुपए प्रति क्विंटल पेनाल्टी भी देनी होगी
मिलर्स को एक स्टेक के बराबर या अधिक का डीओ जारी होने के बाद धान उठाव के 15 दिनों में चावल जमा के लिए स्टेक आवंटन करने एप में आवेदन करना होगा। पात्र होने के बाद भी स्टेक के लिए आवेदन नहीं करने पर मिलर्स पर 15 रुपए प्रति क्विंटल पेनालटी की जाएगी। एफसीआई और नान में स्टेक आवंटन के 7 दिन के अंदर चावल जमा शुरू करना होगा, 20 दिन में स्टेक पूरा करना होगा। ऐसा नहीं करने पर भी 15 रुपए प्रति क्विं. की दर से पेनाल्टी देनी होगी। धान उठाव 31 मार्च 2025 तक और चावल जमा अवधि 30 जून 2025 तक होगी। इस बार रायगढ़ जिले में 38.50 लाख क्विं. चावल लिए जाने का लक्ष्य है।
भुगतान नहीं होने से टूटी कमर
राइस मिलर्स भी अलग परेशानी में घिरे हुए हैं। वर्ष 21-22 से उनको भुगतान नहीं मिला है। बारदाना की राशि, परिवहन व्यय, प्रोत्साहन राशि, मिलिंग चार्जेस, एफआरके का पेमेंट आदि सब कुछ बकाया है। राइस मिलरों के करोड़ों रुपए मार्कफेड के पास फंस गए हैं। इस साल कड़े नियम बनाने के कारण मिलिंग करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।