




रायगढ़, सितंबर। अरबों रुपए बकाया भुगतान होने के बावजूद मुखर होकर सरकार की मुखालफत करने से बचने वाले राइस मिलर अब वाकई त्रस्त हो चुके हैं। सरकारी नीतियों से आजिज आकर अब मिलर्स ने आने वाले सत्र से कस्टम मिलिंग से दूरी बना सकते हैं। इधर सरकार की गलत नीतियों की वजह से चावल गोदामों में सड़ने लगा है।बारदाने का राशि, यूजर चार्ज, परिवहन भाड़ा, मिलिंग चार्जेस आदि का भुगतान लंबे समय से राइस मिलरों को नहीं हुआ है। चावल जमा करने में भी सरकार कोई मदद नहीं कर रही है। भुगतान नहीं होने के कारण मिलरों को अब अपने हाथ से राशि लगानी पड़ रही है। समय पर पूरा धान उठाकर मिलरों ने सरकार के सिर का बोझ अपने सिर पर ले लिया। नई सरकार दिसंबर से सत्ता में आई है। नौ महीने गुजर चुके हैं लेकिन भुगतान का अता-पता नहीं है। कुछ दिन पहले प्रदेश भर के राइस मिलरों की आम सभा रायपुर में बुलाई गई थी। इसमें सभी जिलों से मिलर शामिल हुए।मिलरों ने सरकार की अनदेखी के खिलाफ अपनी बात रखी। उनका कहना है कि पूर्व सरकार और वर्तमान सरकार ने उनके भुगतान रिलीज नहीं किए। न तो बारदाने का पैसा मिला और न ही परिवहन भाड़ा दिया गया। पूरा धान उठाकर समय पर चावल जमा करने के बावजूद उनका भुगतान लटकाया जा रहा है। मुख्यमंत्री, मंत्री से लेकर विभाग के अफसरों से भी चर्चा की गई। किसी ने भी भुगतान को लेकर ठोस जवाब नहीं दिया। इसलिए मिलरों ने अगले सत्र 24-25 में मिलिंग नहीं करने का निर्णय लिया है।दिसंबर तक चलेगी मिलिंग
वर्ष 23-24 के उठाए धान की मिलिंग करने के लिए मिलर कोशिश कर रहे हैं। नान का कोटा पूरा हो चुका है लेकिन एफसीआई में चावल जमा नहीं हो सका है। गोदाम में जगह नहीं होने और रैक लगने में देरी के कारण चावल जमा नहीं हो पाता। एमआईटी टेस्ट में पांच-छह महीने पुराने धान का चावल फेल हो रहा है। इसलिए मिलरों को भारी नुकसान हो रहा है।
अन्न का भी हुआ अवमूल्यन
सरकार की गलत नीतियों की वजह से मुद्रा का अवमूल्यन होता है, अब अन्न का भी अवमूल्यन होने लगा है। चुनाव जीतने के लिए सरकारें प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदने का वादा कर चुकी हैं। इतना तो उत्पादन का औसत भी नहीं है। साथ ही धान की कीमत भी 31 रुपए किलो दे रहे हैं। इससे कम कीमत में तो मोटा चावल मिल जाएगा। चुनावी हथकंडों के कारण शासन के पास सरप्लस चावल हो गया है। मुफ्त चावल बांटने के बावजूद लाखों टन चावल गोदामों में सडऩे लगा है। जब इस चावल को नीलाम किया जाएगा तो कीमत 31 रुपए किलो भी नहीं मिलेगी। सरकार ने अनाज का भी अवमूल्यन कर दिया है।