




रायगढ़: रायगढ़ लोकसभा सीट पर इस बार परिस्थितियां भाजपा के लिए मुफीद दिख रही हैं। पिछली बार तो आठों विस सीटें गंवाने के बावजूद छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में पासा पलट दिया था। इस बार तो आठ में से बीजेपी के पास चार सीटें हैं, सरकार भी है। भाजपा के लिए चुनौती इस बात की है कि पिछली बार से भी बड़ी जीत कैसे दर्ज की जाए।छग में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव तकरीबन छह महीने के अंतराल में होते हैं। विस चुनाव पहले खत्म होते हैं इसलिए स्वाभाविक है कि लोकसभा चुनाव भी उन्हीं परिणामों के इर्द-गिर्द लड़े जाते हैं। हालांकि रायगढ़ लोकसभा सीट पर वोटर ने बताया है कि उसको विधानसभा चुनाव से कोई फर्क नहीं पड़ता। लोकसभा में मतदान के लिए माइंडसेट ही अलग होता है। अगर विधानसभा चुनावों के हिसाब से लोकसभा में भी वोटिंग होती तो 2019 में कांग्रेस ही जीत जाती। 2018 में रायगढ़ लोकसभा सीट की आठों विस सीटें कांग्रेस के खाते में थीं।
जशपुर से लेकर सारंगढ़ तक सभी सीटें करीब दो लाख वोटों के अंतर से कांग्रेस ने जीती थी। आठों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों ने भाजपा पर 1, 97, 759 वोटों से जीत दर्ज की थी। नवंबर 2018 में चुनाव हुए और छह महीने बाद लोकसभा चुनाव हो गए। विस चुनावों की बढ़त को कांग्रेस ने अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश की लेकिन जनता के माइंडसेट ने चौंका दिया। आठ कांग्रेस विधायक मिलकर भी अपने प्रत्याशी को नहीं जिता सके और गोमती साय ने लालजीत को 66027 मतों से परास्त कर दिया। केवल खरसिया, धर्मजयगढ़ और पत्थलगांव विस सीट में ही कांग्रेस को बढ़त मिली लेकिन परिणाम को प्रभावित नहीं कर सके। इस बार तो सर्वथा अलग समीकरण है। आठ में से चार पर कांग्रेस तो चार पर भाजपा काबिज है। इस हिसाब से तो भाजपा को पिछली बार से ज्यादा लाभ मिलना चाहिए
2018 में विधानसभा चुनावों में भाजपा धराशाई
वर्ष 2018 के विस चुनावों में भाजपा धराशाई हो गई थी। रायगढ़ लोकसभा सीट की आठों विस में कांग्रेस ने क्लीन स्वीप किया था। तब सभी सीटों को मिलाकर कांग्रेस ने कुल 1, 97, 759 वोटों से जीत दर्ज की थी। सबसे ज्यादा अंतर पत्थलगांव सीट पर 36686 वोट का रहा। छह महीने बाद हुए लोकसभा चुनावों में इन्हीं आठ सीटों पर कांग्रेस 66027 वोट से पीछे हो गई। इतने कम समय में वोटर का मूड नहीं बदला बल्कि दोनों चुनावों के लिए माइंडसेट ही अलग था।
2023 विधानसभा चुनाव में दोनों ने बांटी सीटें
छग में विधानसभा चुनावों के थोड़े अंतराल के बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में वोटों की तुलना होना स्वाभाविक है। हाल ही में संपन्न हुए विस चुनाव में भाजपा-कांग्रेस ने चार-चार सीटें बांट ली। जशपुर की तीन और रायगढ़ सीट पर मिलाकर भाजपा ने 1, 07, 884 वोट ज्यादा पाए। वहीं बाकी की चारों सीटों पर कांग्रेस ने 65, 164 वोटों की निर्णायक बढ़त ली। लालजीत सिंह राठिया 2018 विस चुनाव में धरमजयगढ़ से 95, 173 वोट लेकर जीते थे, लेकिन लोकसभा चुनाव में 87, 729 वोट ही मिले।
जितने अंतर से जीते थे, उतनी तो केवल रायगढ़ में बढ़त
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी गोमती साय 66027 मतों से विजयी हुई थी। इतना तो इस बार विस चुनाव में रायगढ़ सीट पर ओपी चौधरी की जीत का अंतर हो गया। 2023 में भाजपा के ओपी चौधरी ने कांग्रेस के प्रकाश नायक को 64443 वोटों से हराया है। लोकसभा चुनाव में रायगढ़ सीट पर क्या मतदाता भाजपा प्रत्याशी को इतनी बढ़त दिला सकेंगे? यह चुनौती तो भाजपा के सामने भी है।
खरसिया ही रहा अपवाद, बाकी सब बह गए
2019 में केवल खरसिया, पत्थलगांव और धर्मजयगढ़ में ही कांग्रेस प्रत्याशी को भाजपा के मुकाबले ज्यादा वोट मिले थे। इसमें भी केवल खरसिया विस क्षेत्र ही ऐसा रहा जिसने विस के मुकाबले भी कांग्रेस को ज्यादा वोट दिए। विस 2018 में उमेश पटेल को 94201 वोट मिले थे और ओपी चौधरी को 77234 वोट। 2019 लोकसभा में खरसिया विस से गोमती साय को 70765 वोट मिले जबकि लालजीत के हिस्से 89496 वोट आए। तब ओपी चौधरी 16967 वोटों से हारे थे। लोकसभा में यही अंतर बढक़र 18731 हो गया। ओपी को जितने वोट मिले थे, उतने भी गोमती साय को नहीं मिले।
विस क्षेत्र अंतर
जशपुर 33, 941
कुनकुरी 29, 364
पत्थलगांव 8591*
लैलूंगा 5052
रायगढ़ 46,659
सारंगढ़ 6325
खरसिया 18,731*
धरमजयगढ़ *27770
पोस्टल *222
कुल अंतर 66, 027
(*पत्थलगांव, खरसिया और धर्मजयगढ़ विस में कांग्रेस आगे रही)