
धरमजयगढ़।
हसदेव की खदान न समझे अडानी पुरूंगा की खदान को, किसी भी स्थिति में पुरूंगा में अडानी पैर नहीं पसार पायेगा। गांव वालों कानूनी कार्यवाही के लिए कस लिया है कमर। जिला, प्रदेश ही नहीं देश-भर से पर्यावरण प्रेमी और वन्य जीव विशेषज्ञ पहुंच खोलेंगे अडानी का काला चिठ्ठा और दर्ज करेंगे विरोध। अडानी को घुटनों पर लाने वाले अंतरराष्ट्रीय ग्रीन नोबेल पुरस्कार विजेता आलोक शुक्ला उड़ायेंगे अडानी की धज्जियां। प्राकृतिक संसाधनों पर अपनी बपौती समझने वाले अडानी कंपनी को यह एहसास भी नहीं है कि वो धरमजयगढ़ की शांत फिजा में जो जहर घोलने 11 नवंबर जो जनसुनवाई करने जा रहा है वो अडानी कंपनी के उल्टी गिनती शुरू होने वाले है क्योंकि यहां की जनता ने 11 नवंबर को होने वाले जनसुनवाई के लिए कमर कस लिया है और किसी भी स्थिति परिस्थिति में यह जनसुनवाई सफल नहीं हो इसके लिए सुनियोजित तरीके से रणनीति तैयार कर लिया गया है।

ईआईए रिपोर्ट झूठ का पुलिंदा
कंपनी का ईआईए रिपोर्ट कॉपी पेस्ट पर आधारित है। यहां के जंगलों में निवासरत वन जीवों का उल्लेख नहीं है। यह पर जो कोल डिपोजिट है उसका 25 प्रतिशत विदोहन का उल्लेख किया गया है। जबकि कंपनी शुरू होने के बाद पूरा उजाड़ दिया जायेगा? पुरूंगा के जंगलों में विगत 20 वर्षों से भी अधिक समय से स्थाई रूप से रह रहे हैं, जिसका उल्लेख ईआईए रिपोर्ट में नहीं है।

पूरा क्षेत्र उजाड़ दिया जायेगा। स्थाई रूप से रह रहे वन्य जीवों का उल्लेख नहीं। कोर जोन और बफर जोन में शामिल महत्व पूर्ण स्थलों को छुपाया गया है। सैडयूल वन के जीव जन्तुओं का उल्लेख ही नहीं। 11 नवंबर को होने वाली अडानी की जन सुनवाई सफल होना इतना आसान नहीं है क्योंकि देश-भर से पर्यावरण प्रेमी और वन्य जीव विशेषज्ञ पहुंचेंगे और अडानी जन सुनवाई में सिर्फ और सिर्फ पर्यावरण और वन जीवों पर ही बात रखेंगे और दर्ज करेंगे विरोध।
