





धरमजयगढ़ न्यूज़ —
लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की तैयारियों ने आज पूरे नगर का माहौल भक्ति और उल्लास से भर दिया. और श्रद्धालु मांड नदी स्तिथ सोमवार की संध्या को संध्या अर्घ्य तथा मंगलवार की प्रातःकालीन बेला में उषा अर्घ्य अर्पित करेंगे ।पूरे नगर में श्रद्धा और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला. नगर पंचायत द्वारा घाटों पर रास्ते , साफ-सफाई और प्रकाश व्यवस्था के व्यापक इंतज़ाम किए गए हैं, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
घाटों पर महिलाएं, बच्चों और युवाओं में भी छठ महापर्व को लेकर उत्साह और उमंग का आलम देखने को मिला।
छठ पूजा, जिसे लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है, केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि सदियों पुरानी परंपराओं, कठोर तपस्या और सूर्य की असीम ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक अनूठा संगम है. ठेकुआ जैसे महाप्रसाद की घर में ही तैयारी की अनिवार्यता इस पर्व की पवित्रता का केवल एक हिस्सा है. इस चार दिवसीय व्रत से जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं, जो इसे अन्य हिंदू पर्वों से एकदम अलग और विशेष बनाती हैं
.डूबते सूर्य को अर्घ्य: छठ दुनिया का एकमात्र प्रमुख त्योहार है जिसमें अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर जीवन के हर पक्ष और पल की समान महत्ता स्वीकार की जाती है.
सूर्य देव की शक्तियों की पूजा: छठ में सूर्य के साथ उनकी पत्नियों ऊषा (भोर) और प्रत्यूषा (संध्या) की भी आराधना होती है, जो ऊर्जा का मुख्य स्रोत मानी जाती हैं.
बिना पंडित के पूजा: इस व्रत में भक्त स्वयं विधि-विधान संपन्न करते हैं. कोई पुरोहित या पंडित आवश्यक नहीं होता; यह जन-जन की आस्था का प्रतीक है.
वस्त्रों में पवित्रता: व्रती साधारण, बिना सिलाई की साड़ी या धोती पहनते हैं, जिससे शुद्धता और सादगी का भाव प्रकट होता है.








