




रायगढ़। कोरबा के डीएमएफ घोटाले में ईओडब्ल्यू ने जिन वेंडरों और बिचौलियों को भी आरोपी बनाया है, उसमें संजय शेंडे का भी नाम है। संजय की एक फर्म ने धरमजयगढ़ जनपद पंचायत में कारनामा किया है। अब उसकी फर्म का नाम सामने आया है, जिसके जरिए घपला किया गया। सांई इंटरप्राइजेस तिफरा बिलासपुर को जनपद सीईओ ने 8 करोड़ का काम दिया था। कांग्रेस शासनकाल में डीएमएफ को जिस तरह से नोंचा-खसोटा गया, वह ऐतिहासिक है। आम आदमी के नाम काम आने वाला फंड नेताओं, अफसरों और व्यापारियों की तिजोरी भरने का माध्यम बन गया। धरमजयगढ़ में वर्ष 22-23 में वन अधिकार पट्टाधारकों के लिए कृषि उपकरण खरीदने का गैरजरूरी प्रस्ताव कार्योत्तर स्वीकृति के नाम पर पास किया गया। इसमें शासी परिषद की कोई स्वीकृति नहीं थी। कृषि विभाग से प्रस्ताव मंगवाकर टेंडर के जरिए सप्लाई का काम दिया जा सकता था, लेकिन धरमजयगढ़ के तत्कालीन जनपद सीईओ एससी कछवाहा को जून 2022 से फरवरी 2023 के बीच 16 ग्राम पंचायतों में 1906 हितग्राहियों को कृषि उपकरण सामग्री सप्लाई के लिए 8.51 करोड़ का काम दिया गया। सप्लाई का ठेका संजय शेंडे की फर्म सांई इंटरप्राइजेस तिफरा बिलासपुर को दिया गया। मजे की बात यह है कि कोरबा में इस फर्म को टेंडर देकर करोड़ों के वारे-न्यारे किए जा चुके थे।
सेंट्रल जीएसटी ने किया था गिरफ्तार
सबसे अहम बात यह है कि अगस्त 2023 में सेंट्रल जीएसटी टीम ने संजय की चार कंपनियों मेसर्स ज्योति ट्रेडिंग कंपनी, मेसर्स क्लिफो ट्रेडिंग कंपनी, मेसर्स एसएस एंटरप्राइजेस और मेसर्स सांई इंटरप्राइजेस के जरिए किए गए फर्जीवाड़े में उसकी गिरफ्तारी की थी। संजय ने 22 फर्जी फर्मों के नाम पर बिना किसी सामान की आपूर्ति के नकली बिल तैयार किए थे। उसने 10.14 करोड़ रुपए का इनपुट टैक्स क्रेडिट प्राप्त किया। उसी के पहले धरमजयगढ़ में सामग्री सप्लाई का टेंडर दिया गया।
यह कैसा जीरो टॉलरेंस
डीएमएफ घोटाले में भाजपा ने जांच कराने का ऐलान किया था। लेकिन धरमजयगढ़ के इस मामले में जिला स्तर पर भी जांच नहीं हो सकी है। बिना कोई सामान सप्लाई के ही 5.12 करोड़ रुपए का भुगतान भी कर दिया गया। वर्ष 22-23 में धरमजयगढ़ के ग्राम पंचायत सोहनपुर भाग-1, सोहनपुर भाग-2, कमोसिनडांड, आमापाली, सिसरिंगा, बरतापाली, ओंगना, जबगा, साजापाली, नेवार, पुटुकछार, पारेमेर, दर्रीडीह, सोनपुर, साम्हरसिंघा और जमरगा के 1906 वन अधिकार पत्रकधारियों को कृषि उपकरण सामग्री सप्लाई करने की मंजूरी दी गई थी। 44700 रुपए प्रति सेट के हिसाब से 8,51,98,200 रुपए की सामग्री सप्लाई होनी थी। 5,12,18,920 रुपए दिए जा चुके हैं। इसमें जिला स्तर पर जांच क्यों नहीं की गई?